एहसास


  ना ठहरा था  ना ठहरा हूं ना ठहरूंगा जमाने से

 न किस्सों से ,ना रुसवाईयों  से ना किसी फसाने से

मेरी कमियों गिले-शिकवों के किस्से गुनगुनाने से

ना जीत के किसी जश्न से ना ही हार जाने से

मैं मदमस्त गुम अपनी मस्ती में चलता जाऊंगा


अपनी तहरीर और तदबीर से हर सपना सजाऊंगा


बाहर भटका बहुत सब पाया , बस कहीं खुद को न पाया


तेरे एहसास और तेरे  जिक्र ने मुझे खुद से मिलाया,



x

Comments

Popular posts from this blog

पहले ज़माने की मां