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Showing posts from December, 2022

पहले ज़माने की मां

थकती  मां भी है  यह अलग बात है कि वो  जताती नहीं है  थकती मां भी है  यह अलग बात है कि वो  बताती नहीं है भैया आज खाना  आप और मैं बना लें तो ? पापा आज कपड़े  दीदी और आप सुखा  लें तो ? बस वह खामोश रहती है कुछ भी तो कह पाती नहीं है  थकती मां भी है यह अलग बात है कि वो  जताती नहीं है थकती मां भी है  यह अलग बात है कि वो  बताती नहीं है फ्रिज की बोतलें इतनी जल्दी खाली हो जाती हैं  सिंक में बर्तनों की संख्या  तो बढ़ती ही जाती है  बाथरूम फ्लश  प्लांट्स अलमीरा उफ्फ कितना काम है  इस कमर के दर्द को भी  आता नहीं आराम है  अरे आटा बना रही हूं  क्या कोई कूड़ा बाहर फेंक आएगा ? सब अपने कामों में मस्त हैं वैसे भी ठंड में कौन बाहर जाएगा ? पर मां को तो खामोशी के अलावा  कोई भी भाषा आती नहीं है  कलह क्लेश की आवाजें  उसे  भाती नहीं है थकती मां भी है  यह अलग बात है कि वो जताती नहीं है  थकती मां भी है यह अलग बात है कि वो बताती नहीं है ये दूध में भी  कितनी तेजी से उबाल आता है पल भर में सारा दूध  फर्श तक बिखर जाता है  अरे यह पंखे लाइट  कौन खुले छोड़ जाता है ? इसी जद्दोजहद में उसका जीवन निकल जाता है दोस्तों इक मां क

एहसास

  ना ठहरा था  ना ठहरा हूं ना ठहरूंगा जमाने से  न किस्सों से ,ना रुसवाईयों  से ना किसी फसाने से मेरी कमियों गिले-शिकवों के किस्से गुनगुनाने से ना जीत के किसी जश्न से ना ही हार जाने से मैं मदमस्त गुम अपनी मस्ती में चलता जाऊंगा अपनी तहरीर और तदबीर से हर सपना सजाऊंगा बाहर भटका बहुत सब पाया , बस कहीं खुद को न पाया तेरे एहसास और तेरे  जिक्र ने मुझे खुद से मिलाया, x

बेमिसाल

 जब बोलते बहुत थे तो कोई सुनता नहीं था  जब से ओढ़ी है खामोशी यारों भीड़  बहुत है  जब से महसूस किया तुझको अलग मस्ती छाई है मेरे जीवन में तेरे प्मार की ये रोशनाई है यह कलम भी तुम्हारी है यह शब्द भी तुम्हारे हैं  तुम ने ही सिखाया है हम तो तेरे सहारे हैं मेरी रग-रग में मेरे कण कण में  तूं ही समाया है  इसमें है मौज बड़ी जिस भी  रस्ते पर चलाया है ना कुछ पाना ना कुछ खोना ना कोई खुदगर्जी सी है अलग आलम अलग दस्तूर और अपनी मर्जी सी है तेरी रौनक का मेरे चेहरे पर वो नूर छाया है अब तो रहते हैं बेपरवाह से सब तुमने सिखाया है तेरी रहमत तेरी कृपा तेरी चाहत की मस्ती है मेरी सांसो में मेरी रग-रग में तेरी ही हस्ती है मेरे ईश्वर मेरे सर पर रखना हाथ तुम अपना मुझे अपनी नजर में और मेरी औकात में रखना

रफ्तार

 ऐ जिंदगी मैं तेरे साथ भाग रहा था  नींद में था गहरी फिर भी जाग रहा था  ना सपनों का सैलाब था ना आंखों में कोई  ख्वाब था हर शख्स  बेनकाब था फिर भी मैं लाजवाब था भीतर खुद से ही हौड़ थी बाहर तो लंबी दौड़ थी सब कुछ जैसे गुमनाम हुआ जीवन सुबह से शाम हुआ उम्मीदों पर पहरा सा था हर पल जैसे ठहरा सा था चलते चलते चलते चलते  खुद को मीलों तक नापा था थक कर जब बैठा तो जाना  मेरे कण-कण में वो विधाता था